Tuesday, March 01, 2016

यादें


घर जाता हूँ, लगता है बचपन पास आ रहा है !!
भूली यादों का तूफ़ान सा दिल में समा रहा है !!

रेल की खिड़की पर बैठ सदा महसूस हुआ है;
जो जितना क़रीब था  वो उतना दूर जा रहा है !!

माँ, बहिन, भाई, बचपन के खेले हुए साथी,
बन कर चलचित्र सा मेरे ज़ेहन पर छा रहा है !!

क्या हो गया हमें, किस दौर से गुज़र रहे हैं?
अपने से गुमशुदा हो, दिल कहाँ जा रहा है !!

बेतरतीब रफ़्तार ख़यालों की कम नहीं होती,
यादों का यह काफिला बस गुज़रता जा रहा है !!

अपनों से बिछड़े पल, सालों में बदल गए है,
वक़्त का गुबार यादों पे बिखरा जा रहा है !!

हंसने को तो यह मन करता हैं बहुत "आशु"
बस यादों का सिलसिला ही मुझ को रुला रहा हैं !!

Monday, February 15, 2016

ज़रूरी है !


 

साथ होने पर भी, फांसला होना ज़रूरी है !

दो लोगों में जन्नत- ऐ- हवा होना ज़रूरी है !!


मुहब्बत का मतलब नहीं है बाँध के रखना,

दो रूहों के समन्दर में  किनारा होना ज़रूरी है !!


एक दुसरे से मिल कर खाओ ज़रूर प्यार में,

फिर भी सब का अलग निवाला होना ज़रूरी है !!


प्यार सिर्फ प्यार तक ही सीमत नहीं होता,

प्यार में दोस्ती को निभा पाना होना ज़रूरी है !!


कोई भी रिश्ता, फूलों की सेज नहीं होता,

उसमे कुछ सहना, झुक पाना होना ज़रूरी है !!

 

कोई भी फर्क प्यार से बड़ा हो नहीं सकता ,

रिश्तों में प्यार निभा पाना होना ज़रूरी है!!

 

 सच्चा रूह का साथी तो वही होता है "आशु "

जिस में हकीकत दिखा पाना होना ज़रूरी है  !!

Tuesday, January 19, 2016

ग़ज़ल....जब से तुम गये सनम!





पल पल अब लगता है भारी, जब से तुम गये सनम!

वीरान हो गयी दुनिया हमारी, जब से तुम गये सनम!


तुम्हारी यादों के मोती बस एक एहसास बन गए है,

उन से पिरो ली माला न्यारी, जब से तुम गए सनम!


तुम ने कहा जो कहना था, जब अपनी वारी आई,

बात रह गयी अधूरी हमारी, जब से तुम गए सनम!


कैसे भूल जाये यह दिल, उस हंसती हुई नज़रों को,

अब कोई नहीं है खुशग़वारी, जब से तुम गए सनम!


तेरे न होने से दिल में  इक सन्नाटा सा छा गया है

मुस्कराहट खो गयी हमारी, जब से तुम गए सनम!


बड़ी बेकैफ़ियत से गुजरती है, लम्बी राते जुदाई की,

सुबह की रहती है इंतज़ारी, जब से तुम गए सनम!

Thursday, January 07, 2016

तुम्हे देखा जो...ग़ज़ल


तुम्हे देखा जो एक नज़र बस दिल मे समा गए तुम !

अपनी मीठी मुस्कान से मुझे अपना बना गए तुम !


सुना था मुहब्बत के बदले ज़रूर मिलती है मुहब्बत,

फिर क्यों मेरी मुहब्बत के जवाब से  कतरा गए तुम !


दिल से खेलना हम ने कभी सीखा नहीं ऐ जानेमन,

तो फिर क्यों सिर्फ बातों से मेरा दिल बहला गए तुम !


ना इज़हार किया, ना इक़रार किया कभी मुहब्बत का,

बस एक दोस्त की तरह से दोस्ती जैसे निभा गए तुम !


अगर मुहब्बत नहीं थी तो बस एक बार कहा तो होता,

बातों ही बातों से बस 'आशु' का उल्लू बना गए तुम !

Wednesday, March 19, 2014

कशमकश



कुछ लोग हम से अक्सर मिल कर बिछड़ जाते है!
कुछ रिश्ते बनते तो है कुछ मगर बिगड़ जाते  है!!

जब मिलते है वो फ़कत रातों की नींदें उड़ा देते है,
जब बिछड़ने है तो अक्सर घर भी उजड़ जाते है !!

पास रहते है तो हमे बस अपना सा बना लेते है,
जुदा होते है तो दिल के सब चैन भी उड़ जाते है!!

शायद कभी वो जिंदगी में फिर आयें या ना आयें,
अकेले में उन की यादों के समन्दर उमड जाते है !!
 
कितना होता है दर्द,  प्यार की इस कशमकश में,
खुशकिस्मत है फिर भी वो जो इश्क में पड़ जाते है!!

अब !!

अब खुद से बात कर के घबरा जाते है हम!
दिल की बात दिल से न कह पाते है हम!!

तन्हाईयों के जंगल में खो कर अक्सर,
अपनी ही परछाई से डर जाते है हम !!

तेरे जैसा कोई नहीं हैं साथी या संगी मेरा,
जिंदगी की राहों में बस कसमसाते है हम !!

या खुदा यह इश्क का कैसा है इम्तिहा,
अकेले में जुदाई की ठोकरें खाते है हम !!

ऐ काश हमें पुकार लो इक बार तुम,
तेरी कसम सब छोड़ के चले आते है हम !!

'आशु' ख़ुशी में भी रोने का ही मन करता है,
तेरी याद में इस दिल को तडपाते है हम !!

ख्यालों में....

ख्यालों में डूब कर तेरा, चेहरा दिखाई देता है!
गमों से सुखी रेत सा, सहरा दिखाई  देता है !!

तुम को भुलाने की हम ने की हजारों कोशीशें ,
दिल के हर कोने पे तेरा, पहरा दिखाई देता है!!

बदनाम तेरे प्यार में हम हो चुके ओ बेरहम ,
जिंदगी बहता पानी है पर, ठहरा दिखाई देता है!!

हर हसीन चेहरे से  हमें आती है तेरी ही झलक,
जुल्फों से तेरे गैंसुओं का, लहरा दिखाई देता है!!

तुम किस दुनिया में खो कर भूल गए हो हमे,
मुझे अपना हर ज़ख़्म अब, गहरा दिखाई देता है!!

'आशु' हमें दुनिया दीवाना,  कहती है कहती रहे, 
नहीं सुन सकता ये दिल,  बहरा दिखाई देता है!!

ग़ज़ल - भूल जाता हूँ..

तुम्हारी याद को दिल से भुलाना भूल जाता हूँ!
आदतन अपने  हालात बताना भूल जाता हूँ!!

मिलती हो तो चाहता हूँ करूँ मैं बहुत सी बातें,
तुम्हारी आँखों में खो कर सुनाना भूल जाता हूँ!

तुम्हारी खिलखिलाती हंसी में अक्सर खो कर,
मैं सारी दुनिया सारा जमाना भूल जाता हूँ!

नहीं वाकिफ हूँ मुहब्बत के रस्मों और रिवाज़ो से 
अपने पागल दिल को मैं समझाना भूल जाता हूँ!

क्या राज-ऐ-उल्फत है मुहब्बत करने वालों का,
मैं नादान समझना यह अफसाना भूल जाता हूँ !