Tuesday, March 01, 2016

यादें


घर जाता हूँ, लगता है बचपन पास आ रहा है !!
भूली यादों का तूफ़ान सा दिल में समा रहा है !!

रेल की खिड़की पर बैठ सदा महसूस हुआ है;
जो जितना क़रीब था  वो उतना दूर जा रहा है !!

माँ, बहिन, भाई, बचपन के खेले हुए साथी,
बन कर चलचित्र सा मेरे ज़ेहन पर छा रहा है !!

क्या हो गया हमें, किस दौर से गुज़र रहे हैं?
अपने से गुमशुदा हो, दिल कहाँ जा रहा है !!

बेतरतीब रफ़्तार ख़यालों की कम नहीं होती,
यादों का यह काफिला बस गुज़रता जा रहा है !!

अपनों से बिछड़े पल, सालों में बदल गए है,
वक़्त का गुबार यादों पे बिखरा जा रहा है !!

हंसने को तो यह मन करता हैं बहुत "आशु"
बस यादों का सिलसिला ही मुझ को रुला रहा हैं !!

2 comments:

Dr (Miss) Sharad Singh said...

वाह ... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....

Dr (Miss) Sharad Singh said...

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