तुम्हे देखा जो...ग़ज़ल
तुम्हे देखा जो एक नज़र बस दिल मे समा गए तुम !
अपनी मीठी मुस्कान से मुझे अपना बना गए तुम !
सुना था मुहब्बत के बदले ज़रूर मिलती है मुहब्बत,
फिर क्यों मेरी मुहब्बत के जवाब से कतरा गए तुम !
दिल से खेलना हम ने कभी सीखा नहीं ऐ जानेमन,
तो फिर क्यों सिर्फ बातों से मेरा दिल बहला गए तुम !
ना इज़हार किया, ना इक़रार किया कभी मुहब्बत का,
बस एक दोस्त की तरह से दोस्ती जैसे निभा गए तुम !
अगर मुहब्बत नहीं थी तो बस एक बार कहा तो होता,
बातों ही बातों से बस 'आशु' का उल्लू बना गए तुम !
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